Sunday 8 February 2015

एक आत्मा


एक आत्मा : कैसे जिया करुंगी माँ।सुना है माँ मेरे केंद्र की वेदनामय स्पंदन की अनुभूति मेरे अनुभव में आने से पहले तुझ को आन्दोलित कर देती है। यह ज्वाला जो छीन रही मुझे मेरे मुझ से तू ही तो वह मुझ है माँ।मैं सक्षम नहीं हुआ कभी तेरी तरह की समेट लूँ सर्वस्व ।उफ्फ्फ  मेरी दमित भावनात्मकता को किसी भी प्रकार से प्रकट करने की अपनी असमर्थता का इतना तीक्ष्ण परिणाम ।
  किनारा कर पाऊँ तेरे विशाल ममता के सागर से एैसा सामर्थ्यवान नहीं जन्मा तूने।हैं तेरे महासागरों में कई मोती माँ, मै तो तुझ में समाने लायक स्वाति की वह बूँद भी नहीं हो पायी।देख लेती तू सबकी चमकदार आँखें ,देख मेरी भी बंद आँखों के पीछे गिरता हुआ सूखा समुद्र ।क्या हो गया जो मैं पापी अज्ञानी धूर्त हूँ मैं नहीं सक्षम कुछ और तेरे बिना देखने में, दे दे दिशा ही, जहां हो समाप्त तेरा किनारा।चल पड़ूँगा तेरे अनंत किनारों से किनारा करने।


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