Tuesday 30 May 2017

====सबसे बड़ा आश्चर्य====

====सबसे बड़ा आश्चर्य====
युधिष्ठिर के चारो भाई सरोवर किनारे मृतक समान पड़े थे ।पिपासु व भ्रातृ शोक से व्याकुल युधिष्ठिर के सम्मुख यक्ष प्रश्न खड़ा था ।उत्तर दिए बिना जल पीने के प्रयत्न में ही भीम,अर्जुन,नकुल,सहदेव की यह दशा हुई।चौथे भाई ने उत्तर देने की स्वीक्रति देते हुए धैर्यपूर्वक
उत्तर दिए जिसमे अंतिम प्रश्न था "आश्चर्य क्या है"

"अहन्यहानी भूतानि गच्छन्तीह यमालायम।
शेषा: स्थिरत्वमिच्छन्ति कीमाश्चर्यमतः परम।।"

नित्य-नित्य - प्रतिदिन प्राणी यमलोक जा रहे हैं परंतु बचे हुए लोग अमर होना चाहते हैं अथवा ऐसे जीते हैं जैसे वो हमेशा यही हैं।इससे बड़ा आश्चर्य क्या होगा।

ज्योतिर्विद एवं ध्यान मार्गदर्शक 
 पं. श्री तारामणि भाई जी
चामुंडा ज्योतिष केंद्र
www.chamundajyotish.com
"ध्यान सभी दुःखो का एक मात्र इलाज"
Whatsapp/Call-9919935555

Saturday 15 October 2016

"Death Of Mind" meditation camp

"मन की मृत्यु" ध्यान शिविर कनखल,हरिद्धार में 8 -9 अक्टूबर,2016 को सभी परम के प्यासे साधक "त्रिपुर देवी" के स्थान में एकत्रित हुए "श्री मणि भाई जी" के मार्गदर्शनमें उनके जीवंत अनुभवों की सुगंध में कई साधको का स्नान हुआ! सभी साधको ने भीतरी जगत की सुगंध को महसूस कर आत्मजगत में प्रवेश हेतु खूब समर्पण व् प्रयास करा, जिसके फलस्वरूप जन्मो से रुके जल को नदी का सहारा मिलने से महासमुद्र में मिलने की संभावना और पुष्ट हो गई!
"Death Of Mind" meditation camp organised in kankhal,haridwar on 8-9 October on the lap of "Goddess Tripura" .All thirsty devotees joined altogether and got drenched into the Divine Internal Aroma under the able guidance of "Shri Mani Bhai JI" .There every devotee made his stuck water to flow with help of the river of "Shri Mani Bhai JI" which confirmed one beautiful day when all will be drowned into the Ocean.
" श्री मणि भाई जी "
"महाकाल ध्यान संस्थान"
whatsapp - 9919935555
https://youtu.be/jYUQ3f427Ds

Friday 23 September 2016

अघोर

अघोर को मान सम्मान मोह छल कपट माया मोह ज्ञान ध्यान स्त्री पुरुष जल थल जीवित मृत मन अमन किसी भी परिस्थिति का भान नहीं होता। वह दोगलेपन के झूले पे नहीं झूल सकता ,वो भाषा ही भुला जाता ।वह एकदम बाल रूप रहता हमेशा ।जैसे बालक ज़रा सी बात के रूठ जाता जरा सी देर में खिलखिला के हँसने लगता वो बात ही दूसरी हो जाती जिसने गुस्सा करा उसे।अब वो व्यक्ति वो पल वो बात सब समाप्त हो जाती है भुला ही दिया जाता की कुछ हुआ था।ऐसा दुर्लभ अघोर मिलना अत्यंत दुर्लभ है और ऐसे दुर्लभ चित्त की अवस्था की प्राप्ति अत्यंत आनंददायक है।इस अवस्था की अत्यंत आनंदित तरंगो में डोलना एक क्षितिज से दुसरे क्षितिज, परम की मुस्कराहट धारण कर लेता है।ऐसे अघोर चित्तावस्था प्राप्त होने में किसी भी काले रंग काले शब्द काले चित्त से कोई भी सम्बन्ध नहीं है।यह ऐसी परम अवस्था है जो ध्यान के मार्ग से भी सुगम है तंत्र के मार्ग से भी।इस अवस्था का किसी भी एक मार्ग या एक पंथ से ईश्वरीय निर्धारण नहीं है

https://www.youtube.com/watch?v=tMmGjVtZQ7U

साधना की प्यास

भीतरी खालीपन भरने की अनंत खोज अनंत से शुरू हो अनंत पे समाप्त होने की अज्ञात यात्रा के एक पड़ाव पर साधना के मनमोहक जगत में प्रवेश करती,जहाँ एक नया मायाजगत शुरु हो जाता जहाँ एक साधना से दूसरी साधना की मृगरीचिका खींचती हुई ले जाती उस खालीपन के एक दुसरे आयाम में जहां वह देखती जिसे वो खालीपन समझ के भाग रही थी वो खालीपन ही भराव है ,भराव है शून्य का उसी न होने में ही सर्वस्व पाने का आनंद है।उसी न होने की जागृति में जागना घट जाता ,उसी न होने में सर्वस्व पाना हो जाता ,उसी न होने के ज्ञान में गीता का किसी कृष्ण से प्रादुर्भाव होता।यह साधना की सीढ़ी वही ले जाती जहाँ से शुरुआत हुई।आना वहीँ है क्यों की कहीं जाना नहीं है।

https://www.youtube.com/watch?v=p-o_ocSc1rM

Thursday 15 September 2016

Death Of Mind

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1387339577947577&substory_index=0&id=1348780795136789https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1387339577947577&substory_index=0&id=1348780795136789

Monday 5 September 2016

Meditation camp in Kankhal Haridwar

https://www.facebook.com/events/1672925006359992/?ti=cl

Thursday 16 July 2015

खिलता सूर्यास्त

मैं ब्रह्माण्ड सा अपने आधार को आकाश पर पसार के अपना शीश पृथ्वी पर टिका एक टक ताकता रहा उम्र भर अपने क्षितिज की ओर जहाँ से सीमाओं का अंत व प्रारम्भ आभासित होता। पल पल आनंद के निर्माण और विनाश हेतु वहाँ से जन्मता और दूसरी ओर आकर मृत्यु का आभास देता हुआ उस ओर जन्म जाता।
मैं यूँ ही ताकता रहता उस सूर्य के इस ओर जन्मने को बस एक करवट बदलने का समय और वो जन्मा उस ओर।यहाँ पर बस शून्यता से ताकना ही हो पाता बस हो रहा जैसे शिकार कोई स्तंभित हो शिकारी की चमकदार आखों में डूब। अब तो यहाँ बस सूर्योदय का जन्मना ही नहीं बस अब होता सूर्यास्त की भी कोपलों का इस मधुवन में खिलना।वो जो खिला ही रहता है बस मैं उसके हर पल खिले होने के कोण में चला जाता और उसी कोने से ही इसकी डोर थामे रहता ताकि प्रत्येक पल इस सूर्यास्त व सूर्योदय के भ्रामक अंतर में न पड बस इसके साथ साथ हिचकोले खाता रहूँ और खिलता रहूँ पल पल नित नित।

Astrologer Money Dhasmana
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